Sunday, February 3, 2013

केही कविताहरू


१. दूरी


हामी बिच खहरे उर्लिएको छ
को पारी जाने, को वारी आउने?
मौसम फेरिएला,
खहरे सुस्ताउला
विश्वास जिउँदै राखौं
आउ,
बगरमा फूल फुलाई
प्रतिक्षा गरौं


२. रूप

तिमीले मलाई हेर्दा ऐना बन्न भन्छ्यौ
मलाई हेरी रहदाँ मुस्काई रहन्छु भन्छ्यौ
तर थाहा छ? चोट लागे ऐना त फुट्छ नि


३. त्रिवेणी
डायरी मे दबा हुवा सूखा गुलाब लौटा आया
कहती थी आजकल मेरे शेर बहुत चुभतेँ हैँ
उम्मिद मे हुँ के वो खिल के वापस आएगेँ


४. गुलजार
जिन राहों मे हम चले, सिर्फ धूल मिट्टी देख पाते है
गुलजार वो है, जो धूल मिट्टीको तालमहल बना देँते है

५. शेर
ये अंधेरा क्या निगलेगा मुझे ! मैं खुद इस में समा जाऊँ ।

ये देर का सूरज क्या काम, अब उजाले चुभेंगे मुझे ।।
 
 

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