Showing posts with label माँ. Show all posts
Showing posts with label माँ. Show all posts

Friday, April 20, 2012

आमाः मुनब्बर राना

मातातिर्थ औंसीका दिन मुनब्बर रानाका केही शेरहरू सम्पूर्ण आमा र ति आमाहरूका सन्तानमा समर्पण

लबों पर उस के कभी बददुवा नही होती
बस एक माँ है जो कभी खफा नही होती

इस तरह मेरी गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है

मैंने रोते हुए पोछें थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों नही धोया माँ ने दुपट्टा अपना

अभी जिन्दा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नही होगा
मैं जब घर से निकलता हुँ दुवा भी साथ चलती है

जब भी कश्ती मेरी शैलाब मे आ जाती है
माँ दुवा करती हुई ख्वाबमें आ जाती है

ए अँधेरे देख ले मुंह तेरा काला हो गया
माँ ने आँखे खोल दि घरमें उजाला हो गया

मेरी ख्वाहिश हे के में फिर से फरिश्ता हो जाऊँ
माँ से इस तरह लिपटुँ कि बच्चा हो जाऊँ

मुनब्बर माँ के आगे युँ कभी खुलकर नही रोना
जहाँ बुनीयादी हो इतनी नमीं अच्छी नही होती 



सर्जकः मुनब्बर राना



Popular Posts